Sunday, August 15, 2010

स्वतंत्रता दिवस

एक और स्वतंत्रता दिवस बीत गया .. देश और जवान हो गया.. एक बात मेरे मन में साफ़ है की वो लोग आज़ादी का मोल नहीं समझ सकते जिन्होंने गुलामी नहीं देखी लेकिन क्या सम्मान भी नहीं किया जा सकता . जो दूसरी बात सोचता हूँ वो ये की क्या ये बात समझाई और मनवाई जा सकती है ? ये तो सिर्फ अंदर से उठना वाली भावना और ज़ज्बा है . 


देश क्या है ? 
एक नक्शा ? एक झंडा ? एक राष्ट्र गीत ? धर्म ? भाषा ?
शायद इससे बहुत ज्यादा.. लेकिन यही झंडे और गीत के प्रति हमारा सम्मान ही हमारी देश के प्रति प्यार की पहली अभिवक्ति है ! शायद इन प्रतीकों का यही सबसे पहला उपयोग है.. 


तो क्या प्रतीकों का सम्मान और जिम्मेदारी ख़त्म ? 


नहीं... देश बनता है लोगो से और एक दुसरे का सम्मान ही देश के प्रति सच्चा प्यार है ...


 गांधीजी ने कहा था की "कोई भी काम से पहले.. तुमने जो सबसे गरीब और लाचार इंसान देखा हो  उसका चेहरा याद करो और सोचो जो तुम करने जा रहे हो वो उस व्यक्ति के लिए कितना अच्छा या बुरा प्रभाव डाल सकता है "


ये बात सिर्फ सरकार के लिए नहीं बल्कि हर आम और ख़ास के लिए है.. मीडिया के लिए भी ....