निर्देशक और लेखक ने रिसर्च के नाम पर ज्यादा समय हालीवुड की फिल्मो को देखने में बिताया ऐसा ही लगता है ! समय समय पर आप टर्मिनेटर, ट्रॉन लिगेसी, स्पाइडरमैन जैसी फिल्मों की झलक देख सकते हैं, जिसकी शुरुआत फिल्म के पोस्टर से ही हो जाती है. (जो की बैटमैन से लिया गया है)
सुपर हीरो की फ़िल्में बच्चो को ही आकर्षित करने के हिसाब से बनाई जाती है, और ये है भी| इस लिहाज़ से अनुभव शर्मा और शाहरुख को समझना होगा की फिल्म के संवाद और द्रश्य कही कही अश्लील होने की हद्द तक खराब हैं, हाँ वो अलग बात है की शाहरुख का लक्ष्य अब मुख्यतः प्रवासी भारतीय ही होते हैं| भावनात्मक दृश्यों के बावजूद, सुपर हीरो से दर्शकों का कोई भी भावनात्मक जुड़ाव न होना एक बड़ी कमजोरी है| एक बेहतर साई-फाई फिल्म बनाने के लिए जरूरी तीनों बातें, देश में मौजूद एक बड़ा दर्शक वर्ग, देश में ही मौजूद टेक्नीशियन और बड़े बजट की सुलभता के बाद, इससे कही बेहतर की उम्मीद की जानी चाहिए| मसलन इससे कही कम लागत में बनी रोबोट से बेहतर रा-वन में ज्यादा कुछ नहीं|
फिल्म का सबसे लोकप्रिय गाना “छम्मकछल्लो” के लिए आप को थोडा इंतज़ार करना पड़ेगा लेकिन ये इंतज़ार आप को अखरेगा नहीं| गाने को बहुत अच्छा फिल्माया गया है| शोरशराबे और मारधाड के बीच “दिलदारा दिलदारा” गीत भी कानो को सुकून देगा|
अभिनय की द्रष्टि से कलाकार सहाना गोस्वामी, दलीप ताहिल, सतीश साह, टॉम वू तथा कुछ अन्य कलाकारों के लिया इतना कहना काफी होगा की ये फिल्म में हैं| रा-वन की भूमिका में अर्जुन रामपाल काफी जंचते हैं| अर्जुन रामपाल को अपने अंदर छुपा एक जबरदस्त खलनायक को पहचानना होगा, इसमे वे कमाल कर सकते हैं| करीना ने अपना काम बखूबी निभाया है हालाँकि “जब वी मेट” में करीना का गाली देना और इस फिल्म में गालियों में शोध करने में जमीन आसमान का फरक है| बेटे की भूमिका में अरमान वर्मा ने काफी अच्छा काम किया है| पहली फिल्म होने के बावजूद उनके चेहरे पर एक आत्मविश्वास है|
ये फिल्म पूरी और पूरी तरह शाहरुख खान के कंधो पर टिकी है| शाहरुख खान वो करिश्माई शख्शियत हैं जिनकी उपस्थिति ही सफलता की गारंटी है| लेकिन रुकि| शायद यही करिश्मा ही ‘अभिनेता शाहरुख’ की सबसे बड़ी कमजोरी भी है| वो किसी भी किरदार में हो सबसे पहले वो शाहरुख ही लगते हैं| जिन दो फिल्मो में शाहरुख ने खुद से अलग दिखने का प्रयास किया वे थी “रब ने बना दी जोड़ी” और “माय नेम इस खान”| अफ़सोस की उनका न सिर्फ पहला किरदार “रब ने बना दी जोड़ी” का सुरी ही लगता है बल्कि जी-वन बने शाहरुख कही कही तो “माय नाम इस खान” के रिजवान लगने लगते हैं|
अपने स्तर की ये पहली हिंदी फिल्म है, और इस पर की गयी मेहनत के लिए इस फिल्म को एक बार देखा जाना जरूरी है|फिल्म की सफलता की मुख्य वजह शाहरुख ही रहेंगे, तकनीक और विशेष प्रभाव का नंबर दूसरा ही होगा|
तो बात फिर वही आकर अटकती है कि 150 करोड की लागत में लेखन पर किया गया निवेश कितना है? क्या हमें आज भी एक अच्छी साई-फाई फिल्म को बनाने के लिए और सफर तय करना होगा?