RD Burman ने सैकड़ों की संख्या में सुपर हिट संगीत दिया जो शायद कभी भी बाज़ार से बाहर नहीं होंगे। बर्मन के बाद आये सभी संगीतकारों में उनकी झलक मिलती है। विशाल भारद्वाज ने कहा था की उनको सारी मेहनत इस बात में करनी पड़ती है की उनका संगीत आर डी बर्मन का ना लगे।
लेकिन 80 के दशक में उनकी छवि फीकी पड़ने लगी। नासिर हुसैन जैसे साथी, जिन्होंने हमेशा ही आर डी के साथ काम किया था, वो भी अच्छा संगीत कही और तलाश कर रहे थे। सुभाष घई ने तो बर्मन को फिल्म (राम-लखन) में लेकर संगीतकार बदल दिया।
इज़ाज़त (1986) के गाने तो लोकप्रिय हुए लेकिन एक ख़ास वर्ग में, राष्ट्रीय पुरष्कार भी मिला तो गायिका आशा भोसले और गीतकार गुलज़ार को, बर्मन को नहीं।
नाकामियों और हताशा के बीच विनोद चोपडा (1994) लेके आये।