Friday, September 16, 2011

गर्मी की एक शाम


कभी कभी घटनाओं को याद रखना जितना जरूरी होता है शायद उतना ही जरूरी भूल जाना भी होता है , मुश्किल है तो ये की किसको याद रखे और किसको भूल जाए ये हमारे बस में नहीं
पांच भाई बहनों में चौथे नंबर पर होने के कारण ना तो मेरी गिनती बडो में होती थी और ना ही मैं पूरी तरह से छोटा था ऐसी परिस्थिति में बच्चो से अपेक्षा की जाती होगी की वो बडो की तरह गलती न करके, छोटो की तरह रहे
मतलब आपके अधिकारों में जबरदस्त कटौती ! (ये शायद भूलने लायक बात हो)
लेकिन जो याद रखने लायक है और याद भी है, वो ये की भाई बहनों में खूब प्यार और हंसी मजाक के मौके पर मुझे मिलने वाला विशेष समय
हमारे घर में मध्यमवर्गीय परिवार की सभी विशेषताएं तो थी ही साथ साथ शायद घर की बनावट ने हमें और जोड़े रखा था, आज के समय की विशेष जरूरत तब हम भाई बहनों के लिए एक मुश्किल हुआ करती थी, मसलन किसी कमरे का दूसरे कमरों से पूरी तरह अलग होना घर की बनावट और घर में रखे हुए सामान किसी भी कमरे के दरवाज़े को इस तरह बंद करने की इजाज़त नहीं देते थे की, उसका संपर्क किसी भी दूसरे कमरे से टूट सके
लिहाजा हमेशा एक दूसरे के सामने !
दो-दो बड़ी बहनों का होना भाईओं के दैनिक जीवन में काफी आराम का कारण होता है लेकिन साथ ही साथ बड़ी बहनों को कुछ विशेषाधिकार भी होते हैंउम्र में बड़े होना और लड़की होना ये दोनों भिन्न भिन्न विशेषाधिकार प्रदान करते हैं ये उन दिनों की बात है जब अमिताभ बच्चन भैया और सुनील गावस्कर मराठी माणूस नहीं थे
गर्मी की छुट्टियों के दिन थे
तब बच्चो को शिक्षित करने के लिए जुलाई से अप्रैल तक का समय पर्याप्त समझा जाता था
गर्मियों से कुछ अनोखी बातें जुडी थी जो बाकी के साल भर नहीं हो सकती थी, मसलन दिन का खाना रसोई घर से बहार खाना, सारा दिन फर्श पर ही सोना और बैठना, ताश, कॉमिक्स, शाम होने का इंतज़ार और बात
शाम होने में अभी देर थी इसलिए अभी बहार का दरवाज़ा खुलने का इंतज़ार करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था मैं अपनी छोटी दीदी से इस बात की जिद्द कर रहा था की वो मेरे पसंद का खेल खेले जिसे वैसे ही खेलने में ज्यादा रूचि न हो उसको ये बात मनवाना ज्यादा मुश्किल होता है
दीदी लोगो  के प्रति सम्मान ने कभी हमे ऊंची आवाज़ में बात करने की इज़ाज़त नहीं दी थी , और ना ही हम खुद उस सीमा को तोडना चाहते थे, ऐसे ही आदर और सम्मान को दिल में रख जिद्द करते हुए अचानक मेरा हाँथ घूमा और दीदी के गाल पर जा के लगा
.........................ये मेरी तब तक की जिंदगी का सबसे बड़ा पाप था !
दीदी के रोने ने उस भरी गर्मी में मेरे पैरों को ठंडा कर दियासबसे पहला डर की, ये बात अम्मा के कानो तक जाने पर परिणाम क्या होगा सॉरी बोलना और सुनना तब तक दोनों ही नहीं सिखा था.. ऐसा करने वालो पर हम हंसा करते थे. अब इंतज़ार था की अम्मा को इसका पता कब चलेगामैं अकेले ही रहना चाहता थामैं अपने कानो को दीदी के कमरे में लगा गर्मी से जलते हुए स्टोर रूम में आके बैठ गया ... अब बस बुलावे का इंतज़ार था
डर और आत्मग्लानी एक दूसरे को दबाने की कोशिश कर रहे थेडर से मैं बहुत डरता था लेकिन आज आत्मग्लानी भी पूरी ताकत से लड़ रही थी
वक्त बीतता जा रहा था और मेरे शरीर से पसीने की धार बह रही थी .. उस टीन के छत के स्टोर रूम की भयानक गर्मी में अकेले बैठे रहने का एक सुकून था ... कोई हलचल होती न देख मैंने खुद ही सबके बीच जाने का फैसला किया
मैं उठा और उस कमरे के दरवाज़े पर पहुंचा !!
मैंने कमरे में घुसने से पहले अंदर की आहट लेने की कोशिश की लेकिन मेरे कान सिर्फ फुसफुसाहट सुन्न सकते थे! मैं कमरे के अंदर आया तीनो भाई बहनों ने मेरे तरफ देखा फिर एक दूसरे के तरफ और फिर अपने अपने काम पर लग गए.. आत्मग्लानी और दुःख ने मानो डर को अचानक ही खतम कर दिया
मैं भारी कदमो से दीदी के पास पहुंचा और पीछे से पास जाके धीरे से पूछा
छोटी, अम्मा को नहीं बताया क्या?
अचानक किसी ने बाहर का दरवाजा खोला , शाम हो चुकी थी..
मैंने दीदी को पीछे से पकड़ा पीठ में पुच्ची ली.. दीदी ने प्यार भरे गुस्से से बोला -
भाग यहाँ से
मैं बाहर भाग गया!
पसीने से भरे शरीर में बाहर की गरम हवा एक सकूं भरी ठंडक पहुंचा रही थी !
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