Tuesday, July 27, 2010

Journey to Hostel

हमेशा  की  तरह  hostel से  वापस  घर  आना ... लौटने  का  reservation करना  और  journey date पर  2 दिन  के  लिए  reservation extend करा  देना ..घर  से  hostel के  लिए  वापस  train journy भी  एक  अपनी  किस्म  की feature film होती  है .. भारतीय  रेलवे presents से  लेकर  end credit (gwalior station) तक  उसमे  सब  कुछ  होता  है ..love,emotion,tragedy,drama और  हाँ  जुदाई  तक ..कभी  कभी  sex भी ....हर  स्टुडेंट  रास्ते  में  किसी  खूबसूरत  लड़की  से  मिलने  और  लिफ्ट  पाने  के  बावजूद  Phone number लेना  भूल  जाने  तक  कुछ  न  कुछ  मसाला  लेकर  ही  आता  है ...
एक  बार  शुरू  हुए  कहानी  हर  किसी के  लिए  catylist का  काम  करती  है .. कुछ  को तो  घर  से आने के  1 हफ्ते  बाद  याद  आता  है  की  उससे  आज  तक  न  दिखी  हुई ऐसी  खूबसूरत  लड़की  मिली  थी  और  वो  कैसे  उसके  साथ  ग्वालियर  उतर  जाती  अगर  उसका  बाप  साथ  न  होता ..मेरी  बात  निराली  थी ..मेरे  साथ  हमसफ़र  होना  तो  दूर ..अच्छा  खासा  पिछले  स्टेशन  से  आ  रही  लडकियां  भी  अगले  2 स्टेशन  का  भी  साथ  न  देती ....ठीक  से  याद  नहीं  लेकिन  शायद  अक्टूबर  था . . मैंने स्टेशन पर अपने भाई  से  हमेशा  की  तरह  भाव  भीनी  विदाई  ली  ..जाते  ही letter  लिखने  की  कसम  खा कर  ट्रेन  के  अंदर  आया   और  सबसे  पहले letter वाली  कसम  को  भूल  गया ..
शायद  तब  किसी  भी  व्यक्ति  के  साथ  होने  वाले  सामान  की  विचित्रता  ही  दुसरे  यात्रियों  को  सबसे  ज्यादा  आकर्षित  करती  थी .. स्लीपिंग  बैग  उसी   category का  था ..यहाँ  ये  बताना  जरूरी  है  की  आकर्षित  मैं हो  रहा  था  क्युकी  स्लीपिंग  बैग  मेरे  सामने  middle berth पर  सोने  जा  रही  लड़की  के  पास  था  ... जिसने  स्लीपिंग  बैग  को  बार  बार  देखना  ज्यादा  जरूरी  समझा  था  बजाये  1 बार  मुझे  देखने  के ... बहुत  देर  तक  वो  middle birth पर  घुटनों   के  बल  इधर  उधर  करती  रही  finaly उसने  अपने  दर्शनीय बदन  को  आँखों  में  चुभने  वाले  लाल  रंग  के स्लीपिंग  बैग  के  अंदर  छुपा लिया .. और  हाँथ  निकाल  स्विच  की  ओर बढ़ाया .. स्विच  पर हाँथ  रखा .. मेरे  पास  तीन  आप्शन थे देखने  के  लिए .. लड़की  का  चेहरा ,खूबसूरत  मुलायम  हाँथ  और  1856 में  लगा  कला  और  भद्दा  स्विच  ....
चेहरा  सबसे  स्वाभाविक  विकल्प  था .. उसने  स्विच  ऑफ  किया .. और  हाँ  लाइट  बंद  हो  इसके  पहले  मैने  अच्छे  से  देखा की  उसने  मुझे  देखा .. १  सेकंड के  लिए ...मेरा  १  घंटा  बर्बाद .. अब  सिर्फ  अनुमान  लगाने  के  अलावा  कोई  दूसरा  विकल्प  नहीं  था ....मैंने  लगाया  भी ..कुछ  अनुमान  आइसे   भी  जिसमे  मैंने  सोचा  की  शायद  वो  जो   करना  चाहती  है  उसके  लिए  लाइट  बंद  करना  भी  जरूरी  है ..अनुमान  लगाते  लगाते  कब   आँख  लगी  पता  भी  नहीं  चला ...आँख  खुली  तो  अवशेष  भी  शेष  न  बचे  थे ,, middle birth खुली  हुई  थी .. लड़की  का  नमो  निशाँ  नहीं  था ...रात  में  आँखों  में  लाल  रंग  चुभा   कर  और   सुबह  मेरे  चेहरे  का  रंग  उड़ा  कर ..वो  जा  चुकी  थी ...
निचली  birth  पर  खूब  सारा  सामान  रखा  था  और  एक  अधेड़  व्यक्ती  अपनी  ऊंची  सी  साड़ी  पहनी  बीवी  को  उसकी  चिंता  किये  बिना  बच्चे  को  लेकर  जल्दी  से  उतर  जाने  की  सलाह  दे  रहा  था ...
उसकी  आँखें  आज  तक  याद  हैं .. अब  कोई  मदद  नहीं  कर  सकता  मुझे  उसको  ढूँढने  में ..
Facebook भी  नहीं  ...

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