Thursday, November 3, 2011

Bela-Bahadur : Indrazaal Comics


The comic strip was created in December, 1976. Dacoity was at its worst in India in 1970s and the Bahadur series focussed a lot on dacoits.
Bahadur himself was the son of a dacoit Vairab Singh, who died in combat with the Police. Bahadur, then a teenager, was adopted by Vishal, the police officer who shot Vairab Singh.
Upon growing up, Bahadur set up the Citizen's Security Force or the Hindi translation Naagrik Suraksha Dal (NASUD) that aids the police in combating dacoits. Though Bahadur dealt with many kinds of villains, he displayed a much softer corner towards dacoits trying to rehabilitate them.One of his assistants Lakhan was also a reformed dacoit. After surrendering to the police, he started helping Bahadur in curbing crime..
Bela is Bahadur's love interest in the comic series and very skilled in martial arts. She assists Bahadur in his missions against the villains. Whenever, Bahadur would ask Bela to go out with him Bela's favorite reply was "Neki, aur puchh, puchh".
he other prominent characters featuring regularly in the series were Sukhiya, Mukhiya and Lakhan. While Sukhiya was a policeman, Mukhiya (meaning head of the village in Hindi) was the village leader.
Bahadur also got a dog Chammiya in some of the later stories.

Tuesday, November 1, 2011

रा-वन


रा-वन



एक बार मैंने आमिर खान से पूछा हम सिनेमा की हर विधा में सक्षम होने के बावजूद भी अच्छी साई-फाई फिल्मे क्यों नहीं बना पाते है? आमिर का जवाब था क्योंकि हम लेखन में निवेश नहीं करते हैं| लेकिन लेखन में 5 साल लगाने के दावों के साथ, आज भारत की सबसे महंगी साई-फाई फिल्म बन कर प्रदर्शित हो चुकी है|
इरोस इंटरनेशनल और रेड चिली की ये फिल्म शेखर सुब्रमनियम (शाहरुख ख़ान) की कहानी है जो लन्दन में अपनी पत्नी सोनिया (करीना कपूर) और बेटे प्रतीक (अरमान वर्मा) के साथ रहता और एक वीडियो गेम की कंपनी में काम करता है| वो अपने बेटे की मांग और उसे खुश करने के द्रष्टि से एक ऐसा गेम तैयार करता है जिसमे खलनायक उसके हीरो से ज्यादा ताकतवर है, इस सोच के साथ की सत्य की ही जीत होती है| समस्या तब खड़ी होती है जब गेम का विलेन रा-वन सुब्रमनियम के बेटे को मारने के लिए वर्चुअल रियल्टी से बाहर इंसानों की दुनिया में आ जाता है| अब प्रतीक को बचाने की जिम्मेदारी गेम के हीरो जी-वन की है, और वो भी वर्चुअल रिअलिटी से बाहर हमारी दुनिया में आ चुका है|

फिल्म के शुरू होते ही जो पहला ख्याल आप को आयेगा वो ये की यह एक आकर्षक दृश्यों वाली फिल्म है| विशेष प्रभाव और ग्राफिक्स आप को बांधे रखेंगे| और यही एक सफल फिल्म होने की निशानी है | रा-वन का प्रतीक और सोनिया का पीछा करना, जी-वन का पहली बार परदे पर आना, ये कुछ द्रश्य काफी आकर्षक हैं| ट्रेन में फिल्माया गया द्रश्य के लिए 26 कैमरों का प्रयोग किया गया, जो काबीले तारीफ़ है| सी एस टी स्टेशन का टूटना जैसे द्रश्य आप को जरूर हैरतअंगेज लगेंगे| रा-वन और जी-वन की कॉस्ट्यूम आकर्षक हैं| जी-वन का कॉस्ट्यूम दुनिया भर के “सुपर हिरोस” में सबसे अच्छे कॉस्ट्यूमस में से एक होगा||
फिल्म की जो सबसे अच्छी बात है वो है, सत्य की असत्य पर जीत (जो एक नियम का रूप ले चुका हैं) के सन्देश का एक और अनूठा उदाहरण| हम कम्पयूटर के अंदर तो किसी को भी जिता या हरा सकते हैं लेकिन अगर वर्चुअल दुनिया के लोग भी हमारी दुनिया में आए, तो ये नियम उन पर भी लागू होगा|

लेकिन अब दूसरा सवाल, जब आप इस फिल्म के प्रोमो में ये पाते हैं की ये 150 करोड के लागत से बनी भारत की सबसे महँगी और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के स्टंट्स और “स्पेशल इफ्फेक्ट्स” वाली फिल्म है, तब बारीकियों पर ध्यान दिया जाना लाज़मी हो जाता है|

किसी भी सुपर हीरो या साई-फाई फिल्म की खूबसूरती, निर्देशक के कल्पना की उड़ान की ऊँचाई और उड़ान के लिए दी गयी वजह की गहराई पर निर्भर करती है| निर्देशक अनुभव सिन्हा यहाँ दोनों ही मोर्चे पर असफल रहे हैं| किसी भी सुपर हीरो या साई-फाई फिल्म की खूबसूरती, निर्देशक के कल्पना की उड़ान की ऊँचाई और उड़ान के लिए दी गयी वजह की गहराई पर निर्भर करती है| निर्देशक अनुभव सिन्हा यहाँ दोनों ही मोर्चे पर असफल रहे हैं| निर्देशक ने कल्पना की जीतनी भी उड़ान की है उसको स्थापित करने के लिए उनके दिए गए कारण पूरी तरह समझ के परे हैं ! शहाना गोस्वामी के माध्यम से फिल्म के शुरू में दिया गया कारण सिर्फ दर्शकों को ये बताता है की, वो जो भी देखने जा रहे हैं उसका कारण उन्हें बता दिया गया है, अलबत्ता दिए गए कारण और गेम के पात्रों का हमारी दुनिया में बाहर आ जाने के बीच कोई सम्बन्ध नहीं है|

निर्देशक और लेखक ने रिसर्च के नाम पर ज्यादा समय हालीवुड की फिल्मो को देखने में बिताया ऐसा ही लगता है ! समय समय पर आप टर्मिनेटर, ट्रॉन लिगेसी, स्पाइडरमैन जैसी फिल्मों की झलक देख सकते हैं, जिसकी शुरुआत फिल्म के पोस्टर से ही हो जाती है. (जो की बैटमैन से लिया गया है)
सुपर हीरो की फ़िल्में बच्चो को ही आकर्षित करने के हिसाब से बनाई जाती है, और ये है भी| इस लिहाज़ से अनुभव शर्मा और शाहरुख को समझना होगा की फिल्म के संवाद और द्रश्य कही कही अश्लील होने की हद्द तक खराब हैं, हाँ वो अलग बात है की शाहरुख का लक्ष्य अब मुख्यतः प्रवासी भारतीय ही होते हैं| भावनात्मक दृश्यों के बावजूद, सुपर हीरो से दर्शकों का कोई भी भावनात्मक जुड़ाव न होना एक बड़ी कमजोरी है| एक बेहतर साई-फाई फिल्म बनाने के लिए जरूरी तीनों बातें, देश में मौजूद एक बड़ा दर्शक वर्ग, देश में ही मौजूद टेक्नीशियन और बड़े बजट की सुलभता के बाद, इससे कही बेहतर की उम्मीद की जानी चाहिए| मसलन इससे कही कम लागत में बनी रोबोट से बेहतर रा-वन में ज्यादा कुछ नहीं|
फिल्म का सबसे लोकप्रिय गाना “छम्मकछल्लो” के लिए आप को थोडा इंतज़ार करना पड़ेगा लेकिन ये इंतज़ार आप को अखरेगा नहीं| गाने को बहुत अच्छा फिल्माया गया है| शोरशराबे और मारधाड के बीच “दिलदारा दिलदारा” गीत भी कानो को सुकून देगा|

अभिनय की द्रष्टि से कलाकार सहाना गोस्वामी, दलीप ताहिल, सतीश साह, टॉम वू तथा कुछ अन्य कलाकारों के लिया इतना कहना काफी होगा की ये फिल्म में हैं| रा-वन की भूमिका में अर्जुन रामपाल काफी जंचते हैं| अर्जुन रामपाल को अपने अंदर छुपा एक जबरदस्त खलनायक को पहचानना होगा, इसमे वे कमाल कर सकते हैं| करीना ने अपना काम बखूबी निभाया है हालाँकि “जब वी मेट” में करीना का गाली देना और इस फिल्म में गालियों में शोध करने में जमीन आसमान का फरक है| बेटे की भूमिका में अरमान वर्मा ने काफी अच्छा काम किया है| पहली फिल्म होने के बावजूद उनके चेहरे पर एक आत्मविश्वास है|
ये फिल्म पूरी और पूरी तरह शाहरुख खान के कंधो पर टिकी है| शाहरुख खान वो करिश्माई शख्शियत हैं जिनकी उपस्थिति ही सफलता की गारंटी है| लेकिन रुकि| शायद यही करिश्मा ही ‘अभिनेता शाहरुख’ की सबसे बड़ी कमजोरी भी है| वो किसी भी किरदार में हो सबसे पहले वो शाहरुख ही लगते हैं| जिन दो फिल्मो में शाहरुख ने खुद से अलग दिखने का प्रयास किया वे थी “रब ने बना दी जोड़ी” और “माय नेम इस खान”| अफ़सोस की उनका न सिर्फ पहला किरदार “रब ने बना दी जोड़ी” का सुरी ही लगता है बल्कि जी-वन बने शाहरुख कही कही तो “माय नाम इस खान” के रिजवान लगने लगते हैं|

अपने स्तर की ये पहली हिंदी फिल्म है, और इस पर की गयी मेहनत के लिए इस फिल्म को एक बार देखा जाना जरूरी है|फिल्म की सफलता की मुख्य वजह शाहरुख ही रहेंगे, तकनीक और विशेष प्रभाव का नंबर दूसरा ही होगा|
तो बात फिर वही आकर अटकती है कि 150 करोड की लागत में लेखन पर किया गया निवेश कितना है? क्या हमें आज भी एक अच्छी साई-फाई फिल्म को बनाने के लिए और सफर तय करना होगा?